सोमवार, 21 मई 2012

Bhai-Bahan by Gopal Singh Nepali

तू  चिंगारी बनकर उड़ री , जाग - जाग मैं ज्वाल बनूँ 
तू बन जा हहरती गंगा मैं झेलम बेहाल बनूँ 
आज बसंती चोला तेरा मैं भी सज लूँ लाल बनूँ 
तू भगिनी बन क्रांति कराली मैं भाई विकराल बनूँ 

यहाँ न कोई राधा रानी ब्रिन्दावन बन्शिवाला 
तू आँगन की ज्योति बहन ऋ मैं घर का पह् रेवाला
बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं , तू ममता की गोद बनी 
मेरा जीवन क्रीडा कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद बनी 
मैं भाई फुलों में भुला मेरी बहन विनोद बनी 
भाई की गति मति भगिनी की दोनों मंगल मोद बनी 

यह अपराध कलंक सुशीले सारे फूल जला देना 
जननी की जंजीर बज रही चल तबियत बहला देना 
भाई एक लहर बन आया बहन नदी की धारा है 
संगम है गंगा उमड़ी है डूबा कुल किनारा है 
यह उन्माद बहन ही भाई  का ध्रुवतारा है 

मंगल घडी बहन भाई है वह आजाद तराना है 
मुसीबतों से बलिदानों से पत्थर को समझाना  है 

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