बुधवार, 23 मई 2012

Bachon ka dudh by Ramdhari Singh Dinkar

जेठ हो  की हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है 
छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है 

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है 
वसन कहाँ ? सुखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं 
बंधी जीभ, आँखे विष्ण गम खा शायद आंसू पिते हैं 

पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आंसू पीना 
चूस-चूस सुखा स्तन माँ का , सो जाता रो - विलप नगीना 

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती 
अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती 

कब्र - कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती  है 
"दूध - दूध  " की कदम - कदम पर सारी रात होती है 

"दूध - दूध  " औ वत्स मंदिरों में बहरे पाशान यहाँ है 
"दूध - दूध  " तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं 

"दूध - दूध  " गंगा तु ही अपनी पानी को दूध बना दे 
"दूध - दूध  " उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे 

"दूध - दूध  " दुनिया सोती है लाऊं दूध कहाँ किस घर से 
"दूध - दूध  " हे देव गगन के कुछ बूंद बरसा अम्बर से 

हटो व्योम से , मेघ पंथ से स्वर्ग लुटने हम आते हैं 
"दूध - दूध  "  ये वत्स  तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं 

मंगलवार, 22 मई 2012

Hai Taaj Himalya ke Sir Oar by Gopal Singh Nepali

आज परिंदों से कह दो , अब यहाँ विदेशी राज नहीं 
है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

ताजों से मिली गुलामी के बंधन को हमने कट लिया 
राजाओं को  छुट्टी दे दी तख्तो को हमने बाँट दिया 
अब एक ताज के बदले में लाखों सर पर गाँधी टोपी 
चालीस कोटि युवराजों में अब कोई भी बेताज नहीं 
है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

जगमगा उठी गंगा - जमुना क्या लाल किला क्या ताजमहल 
कुटियों से लड़ कर राज लिया आज़ाद हो गए राजमहल 
महलों ले लेकर कुटियों तक साम्राज्य यहाँ अपनेपन का 
अपनी धरती अपना अम्बर कोई जालिम सरताज नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

अब दिल्ली दरबार नहीं अह परवानो की महफ़िल है 
है नयी शम्मा उम्मीदों की आज़ाद एशिया का दिल है 
इस दिल की धडकन में धडके लाखो अरमान करोड़ो के 
राजा हो एक प्रजा लाखों अब ऐसा यहाँ रिवाज नहीं 
है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं

मेहमान लुटेरे थे जितने दिल्ली की गलियां छोड़ गए 
आवाज लागइ हमने तो काँटों में कलियाँ छोड़ गए 
वे दुश्मन गए गरीबों के रखवारे गए गरीबी के 
आबाद गरीबी थी जिन से वे रहे गरीब - निवाज नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

आज़ाद चमन से चुन-चुंन कर जो भाई दिल्ली आते हैं 
दुखियों से प्यार जताते हैं मिल कर सरकार चलते हैं 
हैं भारत के हर सुख दुःख में चालीस करोडो का हिस्सा 
यह  घर सब का है थोड़े से लोगों के लिए स्वराज नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

अब एक जगह एकत्र नहीं धन-दौलत हो चाहे सत्ता 
है साझीदार बहारों के अब कलि-कलि पत्ता पत्ता 
जो दिए जलेंगे महलों में वे दिए जलेंगे कुटियों में 
जो भेद चलाना  चाहेगा पुछे गा उन्हें समाज नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

हम जिसे बनाना चाहेंगे वह राजा होगा जनमन का 
हर नई किरण के लिए खुला दरवाजा होगा आँगन का  
अब किले महल की दीवारें रोकेंगी राह न जनता की 
आज़ाद न कर दे दुनिया को तो भारत की आवाज़ नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 

हर सिंहासन का अधिकारी अब अंतिम दीपक जला गया 
आवाज़ न आई ताजो का चुपचाप जनाजा चला गया 
रह गए यहाँ जो अब उनका आज़ादी की सौगंध यही 
फौजों से भरे विदेशी अब लायेंगे यहाँ जहाज नहीं 
 है ताज हिमालय के सर पर, अब और किसी का ताज नहीं 



सोमवार, 21 मई 2012

Bhai-Bahan by Gopal Singh Nepali

तू  चिंगारी बनकर उड़ री , जाग - जाग मैं ज्वाल बनूँ 
तू बन जा हहरती गंगा मैं झेलम बेहाल बनूँ 
आज बसंती चोला तेरा मैं भी सज लूँ लाल बनूँ 
तू भगिनी बन क्रांति कराली मैं भाई विकराल बनूँ 

यहाँ न कोई राधा रानी ब्रिन्दावन बन्शिवाला 
तू आँगन की ज्योति बहन ऋ मैं घर का पह् रेवाला
बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं , तू ममता की गोद बनी 
मेरा जीवन क्रीडा कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद बनी 
मैं भाई फुलों में भुला मेरी बहन विनोद बनी 
भाई की गति मति भगिनी की दोनों मंगल मोद बनी 

यह अपराध कलंक सुशीले सारे फूल जला देना 
जननी की जंजीर बज रही चल तबियत बहला देना 
भाई एक लहर बन आया बहन नदी की धारा है 
संगम है गंगा उमड़ी है डूबा कुल किनारा है 
यह उन्माद बहन ही भाई  का ध्रुवतारा है 

मंगल घडी बहन भाई है वह आजाद तराना है 
मुसीबतों से बलिदानों से पत्थर को समझाना  है 

Pushp Ki Abhilasha by Makhan Lal Chaturvedi











पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ  जाएँ  वीर अनेक

Bhikshuk by Surya Kant Tripathi Nirala

वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,

चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,

बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!

Saraswati Vandna By Surya Kant Tripathi Nirala







वर दे  वीणा वादिनी वर दे ,
प्रिये स्वतंत्र रव अमृत मंत्र रव,
भारत में भर दे, 
वर दे वीणा वादिनी वर दे...

नव गति नव लय ताल छंद नव नवल कंठ नव 
जलद मंद्र रव नव नभ के नव विहग वृन्द को
 नव पर नव स्वर दे 
वर दे वीणा वादिनी वर दे ....


काट उर के बंधन सब बहा जननी 
ज्योतिर्मय निर्झर 
कलुष वे तम हर प्रकाश वश 
जगमग जग कर दे 
वर दे वीणा वादिनी वर दे ...